रास्ते में बाघ, बाघ या सड़क की समस्या ? बाघ और मनुष्य दोनों पीड़ित

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यश कायरकर (जिल्हा प्रतिनिधी): नागभिड़-ब्रह्मपुरी हाईवे पर आए दिन बाघ का आना आम बात हो गई है।  और बाघ को बचाने के चक्कर में एक बस पटरी से उतर कर पलटते- पलटते बच जाती है और वन विभाग को जगह-जगह नजर रखने के लिए अपना सारा काम छोड़ना पड़ता है।

नागभिड़-ब्रह्मपुरी मार्ग पर सायगाटा के पास बाघ रोज सड़क पार करता है और दिन में कई बार लोग रुकते हैं, वन विभाग के वनकर्मी भी दिन-रात नजर रखते हैं और यह मज़ेदार था पर , यह जल्द ही एक समस्या बन गई।

यह न केवल वन विभाग के लिए बल्कि बाघों के साथ-साथ इंसानों के लिए भी परेशानी का सबब बन गया है।  यह करांडला, घोड़ाजारी, ताडोबा, वन्यजीव और  बाघ के लिए मुख्य ट्रेकिंग मार्ग है। वह इस रास्ते पर कल या आज ही नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से चलते आ रहे हैं।  लेकिन 2 साल पहले तक उस जगह पर एक छोटी सी सड़क थी जिसे वह एक ही दौड़ में पार करता था।
आज उस जगह पर सीमेंट की चौड़ी सड़क बन गई है, एक बाघ को इसे पार करने में समय लगता है और वह आसानी से लोगों की नजरों के सामने आ जाती है।
चाहे वह मूल-चंद्रपुर ‘ताडोबा’ से होकर जाने वाला मार्ग हो, चंद्रपुर-अहेरी ‘चपराड़ा’ से होकर जाने वाला मार्ग हो, या नागभीड-सिंदेवही ‘घोड़ाझरी’ से होकर जाने वाला मार्ग हो या गोंदिया-बल्लारशा रेल मार्ग हो.. वेइन अभयारण्यों का सीना चीर कर गुजरते हैं । और हर दिन वे किसी न किसी जंगली जानवर को अपने पहियों के नीचे कुचल देते हैं।  मनुष्य की प्रगति के लिए रास्ते जरूरी हैं, लेकिन किस तरह समाज उन रास्तों को स्वीकार करता है, जिनके माध्यम से बाघ, तेंदुआ, भालू, अजगर जैसे कई जंगली जानवर और जंगलों को कुचलते हुए गुजरते हैं?  मानव प्रगति के लिए पथ आवश्यक हैं, लेकिन इससे  इंसान या जानवर को कितनी भारी कीमत चुकानी पड सकती है यह भी देखना चाहिए। एक तरफ सरकार वनविभाग, बाघ संरक्षण दल, एनटीसीए आदि के माध्यम से उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हुए बाघ संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।

लेकिन कुछ छोटी-छोटी बातों की अनदेखी या कुछ लालची अधिकारियों के कारण जंगलों का अतिक्रमण, बाघों के आवासों में खनन, संरक्षित जंगलों में निर्माण की मंजूरी, पैसे के लालच में ताडोबा जैसे बाघ के राज्य में दिन-रात सफारी,  अभयारण्यों के आसपास बने रिसॉर्ट्स ने बाघों की आजादी छीन ली है।
उनका आवास छीन कर उन बाघों को गांवों, खेतों, सड़कों पर भटकने को मजबूर कर खानाबदोशों में तब्दील कर दिया गया है।  जिस रास्ते से यह बाघ दिखाई देता है, वह कई पिंडियों से ही होकर गुजरता रहा है।  यह बात वनविभाग और पीडब्ल्यूडी के वरिष्ठ अधिकारी जानते हैं।
ब्रम्हापुरी वनविभाग के उपवनसंरक्षक का प्रधान कार्यालय है, यह सिर्फ 10 किमी दूर है।  लेकिन जब पुरानी सड़क को गिराया जा रहा था और सीमेंट की नई सड़क बनाई जा रही थी, तो वनविभाग को इसे रोककर वहां सिर्फ 100 मीटर का छोटा अंडरपास बनाने की बात करनी चाहिए थी।

केवल 100 मीटर और 7 फीट ऊंचा पुलिया का निर्माण किया होता तो वहा वन विभाग को आज उस स्थल की रक्षा करने की जरूरत ना होती । वहां से 100 कि.मी. प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलने वाले वाहनों से अपनी जान जोखिम में डालकर बाघ को सड़क पार करने का मौका नहीं आता था।  लेकिन यह छोटी सी बात वर्तमान और भविष्य की समस्या का स्थायी समाधान हो सकती थी।
“रास्ते बनाए जाने चाहिए, लेकिन छोटे फ्लाईओवर (ओवर ब्रिज), सुरंग (अंडर पास) बनाए जाएं जहां जंगली जानवरों के लिए यात्रा मार्ग हो। रोड दुर्घटना  की संख्या को कम किया जा सकता है।

जिस तरह शहरों में मुख्य सड़कों पर फ्लाईओवर बनते हैं, गांवों में अंडरपास बनते हैं, उसी तरह जंगल की सड़कों पर कुछ जगहों पर फ्लाईओवर या अंडरपास बन जाते तो  बाघ  रोड पर ना आते हैं.  सड़क पर ट्रैफिक की लाइन, बाल-बाल बचे बाइकर्स, जनावर को बचाने के लिए एसटी बस का पलटी खाते बचना,   ट्रेन का डिब्बा किसी जानवर से टकराना या उसे बचाने के लिए पटरी से उतरना, इन सारी समस्याओं से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं” – ‘स्वाब नेचर केयर संस्था ने कहा।

सार्वजनिक बांधकाम निर्माण विभाग, वनविभाग के अधिकारियों, मानद वन्यजीव वार्डन और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की एक समिति द्वारा 2018-19 में किए गए एक सर्वेक्षण में उक्त मार्ग पर 4 किमी अंडरपास की मांग की गई थी, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया था। जिसके कारण बाघों को सड़क पार करना पड़ता है।  दोनों तरफ जाली लगाने की मांग भी लोगो ने की थी । लेकिन बाघों का आने जाने का रास्ता बदलने वाली बात है।  जिससे बाघ अपना रास्ता बदल कर आस पड़ोस के गांव से रास्ता बना सकता है। “
– विवेक करंबेकर , मानद वन्यजीव रक्षक ब्रम्हपुरी    

“उस मार्ग पर एक ओवर ब्रिज के निर्माण के लिए स्वीकृति जारी है, जल्द ही एक ओवर ब्रिज होगा।”  – दीपेश मल्होत्रा, उप वन संरक्षक, ब्रह्मपुरी वन विभाग, ब्रह्मपुरी

ऐसा कहा जा रहा है। ओवर ब्रिज बने तक कोई दुर्घटना ना हो और जलद से जलद ओवर ब्रिज हो जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष को रोखने मे मदत होगी।

     

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