बिबट्या: जंगल की परछाई का अनसुना सम्राट

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चंद्रपुर (मोहम्मद सुलेमान बेग):
आज 3 मई 2025– विश्व बिबट्या दिवस (World Leopard Day)
एक ऐसा दिन जो समर्पित है उस शिकारी को, जो न दहाड़ता है, न गर्जना करता है।
वह चुपचाप चलता है, वृक्षों पर चढ़ता है, अंधेरे में खो जाता है –
वह है बिबट्या – जंगल की रहस्यमयी परछाई।

महाराष्ट्र का ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व भले ही बाघों के लिए प्रसिद्ध हो,
लेकिन असली जंगल प्रेमी जानते हैं कि इसी जंगल में एक और सम्राट निवास करता है –
एक ऐसा शिकारी जो अपनी चपलता, फुर्ती और गुप्त स्वभाव से जंगल पर राज करता है –
तेंदुआ, जिसे मराठी में बिबट्या कहा जाता है।

ताडोबा में बिबटों की स्थिति
मौजूदा जानकारी के अनुसार, ताडोबा के कोर और बफर क्षेत्रों में लगभग 40–45 बिबटों की उपस्थिति दर्ज की गई है।
हालाँकि इनका व्यवहार बेहद सतर्क और छुपा हुआ होता है, जिससे ये आमतौर पर पर्यटकों की नजरों से दूर रहते हैं।
इनकी गतिविधियाँ अधिकतर ट्रैप कैमरों के माध्यम से ही दर्ज होती हैं।

बढ़ते खतरे – सड़कें, तार और संघर्ष
2020 से 2024 के बीच ताडोबा क्षेत्र में कम से कम 10–12 बिबटों की मृत्यु सड़क दुर्घटनाओं या मानवीय संघर्षों के कारण हुई है।
तेज़ रफ्तार वाहनों की टक्कर, खुले बिजली के तार, और इंसानों के साथ संघर्ष इनके जीवन के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं।
इन घटनाओं में अधिकांश मौतें बफर ज़ोन या उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में हुई हैं, जहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर और जनजागरूकता की कमी इन जानवरों के लिए खतरा बनती जा रही है।


अब समय आ गया है कि हम बिबटों के संरक्षण हेतु वन्यजीव-अनुकूल अवसंरचना (infrastructure) विकसित करें,
सड़कों पर गतिरोधक उपाय (speed breakers, signage) अपनाएँ और ग्रामीण क्षेत्रों में जन-जागरूकता फैलाएँ।


ताडोबा का रहस्य – ब्लैक लेपर्ड
ताडोबा का सबसे दुर्लभ और आकर्षक रत्न है – ब्लैक लेपर्ड।
यह पूरी तरह काला नहीं होता, बल्कि इसकी चमड़ी पर गहरे धब्बे होते हैं जो सिर्फ सूर्यप्रकाश या कैमरे की फ्लैश में नज़र आते हैं।
इसे वैज्ञानिक रूप से मेलनिस्टिक बिबट्या कहा जाता है।
इस दुर्लभ प्राणी की झलक ताडोबा में कुछ भाग्यशाली सैलानियों और कैमरा ट्रैप्स में देखी गई है –
जो इसे एक अनमोल रत्न बनाती है।

भारत में बिबट्ये देखने के प्रमुख स्थल

काबिनी, कर्नाटक
ब्लैक लेपर्ड की नियमित झलक के लिए प्रसिद्ध – भारत का सबसे प्रतिष्ठित स्थान।

जवाई, राजस्थान
यहाँ बिबटे ग्रेनाइट की पहाड़ियों और गुफाओं में रहते हैं, और इंसानी बस्तियों के समीप सहजता से देखे जा सकते हैं।

झालाना, जयपुर
भारत का पहला शहरी बिबट्या संरक्षण क्षेत्र – जहाँ नियमित दर्शन संभव हैं।

संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान, मुंबई
दुनिया का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान जो महानगर के भीतर स्थित है – बिबटों की स्थायी उपस्थिति यहाँ पाई जाती है।

सरिस्का टाइगर रिज़र्व, राजस्थान
बाघों के साथ-साथ बिबटों की भी मजबूत उपस्थिति।
बांधवगढ़, मध्य प्रदेश
घने वनों में बाघों के साथ-साथ बिबटों की भी झलक मिलती है।

पेंच राष्ट्रीय उद्यान (म.प्र./महा.)
“जंगल बुक” की प्रेरणा का स्थल – जहाँ बाघ और बिबट्ये दोनों निवास करते हैं।

नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, कर्नाटक
दक्षिण भारत के श्रेष्ठ संरक्षित क्षेत्रों में से एक – जहाँ सामान्य एवं मेलनिस्टिक दोनों प्रकार के बिबटे देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष – बिबट्या: जंगल की अनसुनी दहाड़

वर्ल्ड लेपर्ड डे केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है –
कि यदि हमने आज इनके संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ इन परछाइयों के सम्राट को केवल किताबों और तस्वीरों में ही देख पाएँगी।

“जंगल का राजा शेर या बाघ हो सकता है,
लेकिन परछाइयों का सम्राट तो बिबट्या ही है।”
आइए, आज संकल्प लें –
कि हम इस रहस्यमयी शिकारी को न केवल सम्मान देंगे, बल्कि उसके अस्तित्व की रक्षा भी करेंगे।
बिबट्या को उसका जंगल लौटाएँ।

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