
“जहां संकट था, वहीं अब उम्मीद है – महाराष्ट्र में बाघ संरक्षण की नई कहानी”
हर वर्ष 29 जुलाई को पूरी दुनिया में ग्लोबल टायगर डे मनाया जाता है। यह दिन न केवल बाघों की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त करने का अवसर है, बल्कि उन सकारात्मक प्रयासों को सम्मान देने का दिन भी है जो इन जंगलों के बाघ को बचाने में लगे हैं।
महाराष्ट्र के घने वन – जैसे ताडोबा, मेलघाट, पेंच, सह्याद्री और नवेगांव-नागझिरा – कभी संकट की स्थिति में थे। लेकिन अब, इन जंगलों में फिर से बाघों की दहाड़ गूंजने लगी है।

संरक्षण की सफल कहानियां
ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प (TATR): एक उदाहरण
आज ताडोबा केवल एक अभयारण्य नहीं, बल्कि भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रबंधित टायगर रिज़र्व माना जाता है। यहां डिजिटल ट्रैकिंग, सीसीटीवी निगरानी, रेडियो कॉलर, कैमरा ट्रैप्स, और रैपिड रिस्पॉन्स टीमें दिन-रात बाघों की सुरक्षा में कार्यरत हैं।

वन विभाग की रणनीति और स्थानीय सहभागिता ने ताडोबा को बाघों के लिए सुरक्षित स्वर्ग में बदल दिया है।

ग्रामीण – शिकारियों से संरक्षकों तक
एक समय था जब ग्रामीण बाघ को खतरा मानते थे। आज वही लोग ‘वन मित्र’ बनकर संरक्षण में भागीदारी निभा रहे हैं।
बफर गावों के युवक गाइड, ड्रायव्हर, ट्रॅकर और नेचर इंटरप्रिटर्स बनकर वन पर्यटन का हिस्सा हैं।
महिलाएं हस्तकला, वन उत्पाद और ईको-टूरिज़म से आत्मनिर्भर हो रही हैं।
इससे ना केवल स्थानीय आय में वृद्धि हुई है, बल्कि बाघों के प्रति अपनापन और समझ भी बढ़ी है।
विकास योजनाएं अब वन्यजीवों के अनुकूल
राज्य सरकार ने अब विकास को वन्यजीवों के अनुकूल बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं:
वन्यजीव गलियारे (Wildlife Corridors) की सुरक्षा
हाइवे व रेलमार्गों पर अंडरपास/ओवरपास का निर्माण
रेस्क्यू और ट्रांजिट केंद्रों की स्थापना
इन प्रयासों ने बाघों की आवाजाही को सुरक्षित बनाया है और मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं में भी कमी आई है।

📊 आंकड़ों में दिखती आशा
2024 की शुरुआत में कई टायगर रिज़र्व में बाघों की स्थिर या बढ़ती संख्या देखी गई।
ताडोबा, पेंच और मेलघाट में परिवारों का गठन (cluster families) दर्शाता है कि बाघ पुनरुत्पादन कर रहे हैं।
जल स्रोत, शिकार प्रजातियाँ और शांत जंगल – ये सभी अब बाघों के लिए अनुकूल बन रहे हैं।

नई पीढ़ी – बाघों की नई रक्षक
हर साल ग्लोबल टायगर डे पर:
स्कूलों में निबंध, चित्रकला प्रतियोगिताएं और रैलियाँ होती हैं।
वन विभाग द्वारा वन भ्रमण और संगोष्ठियों के ज़रिए जागरूकता फैलाई जाती है।
इससे बच्चों में प्रकृति प्रेम और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है।
लौटी दहाड़ – बढ़ा अभिमान
आज महाराष्ट्र के जंगल फिर से दहाड़ से गूंज रहे हैं। इसके पीछे हैं:
समर्पित वन अधिकारी जागरूक ग्रामवासी और प्रतिबद्ध प्राकृतिक प्रेमी नागरिक ग्लोबल टायगर डे हमें याद दिलाता है कि ये सिर्फ एक प्रजाति नहीं, बल्कि जंगल की आत्मा है।
जहां बाघ की दहाड़ है, वहीं जीवन है
“बाघ है तो जंगल है, जंगल है तो पानी है, और पानी है तो जीवन है।”
आइए, इस टायगर डे पर हम यह संकल्प लें:
“हर बाघ की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है – हम मिलकर इस धरती पर जीवन की दहाड़ को ज़िंदा रखेंगे।”
लेखक: मोहम्मद सुलेमान बेग
वन्यजीव अभ्यासक


 
                